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उद् गीत
प्रोफेसर गौतम जी की सेवा निवृत्ति के पश्चात् एक दिन घर में बैठकर बात-चीत करते हुए डॉ. वीरेन्द्र भारद्वाज ने अपने सर के आगे अपनी प्रबल इच्छा के साथ-साथ, सर के सभी प्रिय विद्यार्थियों के मनोभावों को रखते हुए कहा – “सर, मेरी और आपके सभी आत्मीय शिष्यों की भी यही इच्छा है कि सभी एक साथ एक सूत्र में बंध कर एक साहित्यिक मंच से जुड़ें।
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उद् गीत पत्रिका के हिंदी नाट्यालोचना विशेषांक हेतु लेख व रचनाएँ आमंत्रित हैं।
दिल्ली से प्रकाशित त्रैमासिक पीयर रिव्यूड पत्रिका
उद् गीत
(साहित्य, समाज और संस्कृति)
अंक – 2, अक्तूबर-दिसम्बर 2024
(हिन्दी नाट्यालोचना विशेषांक)
आलेख स्वीकारने की अंतिम तिथि : बुधवार, 20 नवंबर 2024
आलेख भेजने का पता: [email protected]
यह अंक दिसंबर 2024 में प्रकाशित किया जाएगा।
सूचना
प्रस्तावना
साहित्यिक जगत में नाट्य बहुत प्राचीन विधा है। शिक्षण में नाट्य विधा के योगदान को कमतर करके नहीं आंका जा सकता है। भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में नाट्य साहित्य का पठन-पाठन लंबे समय से होता आ रहा है। भरतमुनि का ‘नाट्यशास्त्र’ नाट्य से जुड़ी शास्त्रीय जानकारी प्रदान करने वाला सबसे पुराना ग्रंथ है। नाट्य साहित्य का आरंभ संस्कृत भाषा में भास, कालिदास, भवभूति, विशाखदत्त आदि द्वारा लिखे गए नाटकों से होता है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक छुट-पुट नाट्य लेखन होता रहा। हिंदी नाटकों के आरंभ में गोपालचंद्र के द्वारा ‘नहुष’ (1841) नाटक लिखा गया, जिसे विद्वान हिंदी का पहला नाटक मानते हैं। लेकिन पूर्ण रूप से हिंदी नाटकों के लेखन का प्रारंभ भारतेंदु हरिश्चंद्र से माना जाता है। उस काल के भारतेंदु तथा उनके समकालीन नाटककारों ने लोक चेतना के विकास के लिए नाटकों की रचना की। इसलिए उस समय की सामाजिक समस्याओं को नाटकों में अभिव्यक्त होने का अच्छा अवसर मिला। भारतेंदु के उत्तरवर्ती नाटककारों में जयशंकर प्रसाद, जगदीशचंद्र माथुर, लक्ष्मी नारायण लाल, मोहन राकेश, सुरेंद्र वर्मा, शंकर शेष, मीरा कांत, त्रिपुरारी शर्मा, दया प्रसाद सिन्हा आदि शामिल हैं, जिनका नाट्य जगत में विशिष्ट स्थान है।
‘हिंदी नाट्यालोचना’ विशेषांक हेतु निम्नलिखित विषयों पर विचार किया जा सकता है:
- भारतेंदु हरिश्चंद्र / प्रसाद की नाट्यालोचना दृष्टि
- नाट्यालोचन के सिद्धांत
- हिंदी नाट्यालोचना का इतिहास और विकास
- आधुनिक हिंदी नाटक : शैली, तकनीक और संरचना
- प्रमुख हिंदी नाटककारों का योगदान
- हिंदी रंगमंच की चुनौतियां और संभावनाएं
- हिंदी नाटकों में नए प्रयोग
- नाट्यशैली और स्वरूप
- प्रमुख नाट्य आलोचक और उनके सिद्धांत
- नाट्यालोचन में पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका
- हिंदी नाट्य प्रस्तुति के विविध आयाम
- हिंदी नाट्यालोचना की परंपरा और भारतेंदु / प्रसाद / मोहन राकेश की रंगदृष्टि
- स्वतंत्रता-पूर्व नाट्यालोचन / स्वातंत्र्योत्तर नाट्यालोचन
- अखबारी रंग-समीक्षा
- हिंदी के प्रमुख नाट्यालोचक
- रमेश गौतम की आलोचना दृष्टि
- नाटक, नाटककार और नाट्यालोचना
- नाटक और रंग-आलोचना विशेष
- महिला नाटककारों की नाट्य दृष्टि
- नाट्यालोचन और सोशल मीडिया
- सृजनात्मक साहित्य के अंतर्गत कविता, गीत, गजल, कहानी, निबंध, नाटक, संस्मरण, यात्रा वृतांत, व्यंग्य आदि आमंत्रित हैं।
- उपरोक्त विषयों के अतिरिक्त विशेषांक से संबंधित विषयों का चुनाव भी किया जा सकता है।
- केवल हिंदी भाषा में लिखे लेख ही स्वीकार्य होंगे।
- नियमावली के लिए उद्गीत पत्रिका की वेबसाइट देखें: udgeet.in
- विशेषांक से संबंधित अन्य जानकारी हेतु संपर्क करें: [email protected]
इस अंक के रचनाकार
मीरा कांत
सुधीश पचौरी
वीरेन्द्र भारद्वाज
शंकुतला कालरा
राजवीर शर्मा
ममता वालिया
रमा
माधुरी सुबोध
यामिनी गौतम
अनीता यादव
एम पी शर्मा
राज भारद्वाज
मुनीश शर्मा
रामबक्ष
रमा यादव
सरोज गुप्ता
अनिल शर्मा
कुसुम लता
स्नेह चढ्ढा
जितेन्द्र कालरा
मीनू कुमारी
हेमवती शर्मा
सरला चौधरी
अर्चना गौड़
मुन्ना कुमार पांडेय
मधु कौशिक
संजय कुमार शर्मा
नीलम राठी
ज्योति शर्मा
मंजू शर्मा
जयकिशन पराशर
अर्चना सक्सेना
नीतू शर्मा
बलजीत कौर
तरुण गुप्ता
अनीता देवी
प्रवीण भारद्वाज
दीपमाला
कमलेश वधवा
अर्चना
पूनम शर्मा
नवनीत त्रिपाठी
कंचन
आशा
शिवाजी कॉलेज हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर ज्योति शर्मा के संयोजन और डॉ प्रवीण भारद्वाज के सहयोग से आयोजित जयशंकर प्रसाद कृत “चंद्रगुप्त नाटक” की छात्रों द्वारा मंचीय प्रस्तुति का youtube लिंक |