उद् गीत के बारे में

नेपथ्य से…


प्रोफेसर गौतम जी की सेवा निवृत्ति के पश्चात् एक दिन घर में बैठकर बात-चीत करते हुए डॉ. वीरेन्द्र भारद्वाज ने अपने सर के आगे अपनी प्रबल इच्छा के साथ-साथ, सर के सभी प्रिय विद्यार्थियों के मनोभावों को रखते हुए कहा – “सर, मेरी और आपके सभी आत्मीय शिष्यों की भी यही इच्छा है कि सभी एक साथ एक सूत्र में बंध कर एक साहित्यिक मंच से जुड़ें।

ऐसे में सबसे अहम् कार्य था कि साहित्यिक संस्था को किस नाम से सम्बोधित किया जाये । निरन्तर सुविचार के परिणाम स्वरूप एक नाम पर आकर सह‌मति बनी, वह नाम था ‘उद्‌गीथ’ । ‘उद्‌गीथ’ ही उद्‌गीत के रूप में प्रचलित हो गया। ‘छांदोग्योपनिषद्’ के सर्वथा प्रारम्भ में ‘आदित्य’ एवं ‘उद्‌गीथ’ तथा ‘ऋक- साम’ पर विस्तार से चर्चा की गयी है । प्रणव और उद्गीथ का अभेद बताते हुए कहा गया है ‘अथ खलु य उद्गीथः स प्रणवो यः प्रणवः स उद्गीथ इति।’ निश्चय ही जो उद्गीथ है, वही प्रणव है तथा जो प्रणत्र है, वही उद्गीथ है।

निष्कर्षतः ‘उद्‌गीथ’ में ‘प्रणव’ एवं ‘आदित्य’ दोंनों का ही स्वरूप विद्यमान है। हमारा ‘उद्‌‌गीत’ मूलतः इसी ‘उद्‌गीथ’ की सारी विशेषताओं को अपने में समाहित किए हुए है।

आज हम ‘उद्‌गीत’ के माध्यम से सभी प्रवुद्ध और संस्कारित प्राध्यापक वर्ग के लिए अभिव्यक्ति के एक दर्पण को प्रारम्भ करने जा रहे हैं। आप सभी के ‘सर’ डा. गौतम के पास एक ऐसी गहन और पैनी सूक्ष्म दृष्टि थी, जो साहित्य को सदैव वर्तमान के तराजू पर तोल कर देखती थी। बहुत- बहुत आगे की घटित होने वाली घटनाओं के वे वर्तमान में साक्षी बन कर रहे। उनकी लेखनी की धार बड़ी ही स्पष्ट और अनाविल रही है। नाटकों के पढ़ने-पढ़ाने का उनका नजरिया एक अलग पहचान के साथ नाट्‌य आलोचना से मजबूती से जुड़ा हुआ है। यहाँ तक कि उनकी लगभग 35 के आस-पास नाट्‌य पुस्तको के प्रत्येक शीर्षक में ही नाटक की मूल संवेदना और उसके माध्यम से आगामी प्रभाव चेतना को साथ-साथ देखा जा सकता है। अत्यंत ही सुविचारित दृष्टि से एक नयी वर्तमान स्थिति को उनके प्रत्येक रचना संसार में देखा जा सकता है। इतना विशद और समृद्ध नाट्य आलोचना का विस्तार होते हुए भी डॉ. गौतम ने अपने आपको न कभी प्रचारित किया न किसी विज्ञापन के द्वारा अपना प्रभाव प्रकट किया। मैं कह सकती हूँ कि वे सरस्वती के मौन उपासक थे और आत्म प्रख्यापन से कोसों दूर ।

आज प्रोफेसर गौतम के द्वारा प्रदत्त ‘उदगीत’ (‘उद्‌गीथ’) का यह लघु प्रयास हम प्रारम्भ करने जा रहे है, आशा है इसमें आदित्य जैसा प्रकाश हो और प्रणव की शान्ति पूर्ण, हृदय को शान्त करने वाली ध्वनि की अनुगूंज भी समाहित हो। प्रोफेसर गौतम का आशीर्वाद अदृश्य रूप में सदैव साथ रहेगा और प्रेरणा भी देता रहेगा ।

यामिनी गौतम

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