अज्जो : बेटी इंडिया की
भारत जैसे विशालकाय देश में जब भी महिलाओं से सम्बन्धित समस्याओं पर बात की जाती है तो ज्यादातर भ्रूण हत्या,दहेज प्रथा,घरेलू हिंसा,लैंगिक भेदभाव,शारीरिक असुरक्षा,यौन प्रताड़ना,एसिड अटैक जैसे मुद्दों को सामने लाया जाता है।यह देश का दुर्भाग्य है कि आज भी भारत जैसे देश में महिलाएं कहीं न कहीं ऐसी समस्याओं से जूझ रही हैं।ऐसी ही एक महत्वपूर्ण समस्या है-गर्भवती महिला का घर पर प्रसव पीड़ा से जूझना और कई बार नवजात शिशु का जन्म से पहले ही मृत हो जाना।राम जी बाली ने फिल्म ‘अज्जो’ के द्वारा हिंदी फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में ऐसे ही महत्वपूर्ण विषय पर अपना पहला सफल प्रयास किया है।फिल्म के पहले दृश्य से लेकर आखिरी दृश्य तक इसमें इस बात पर जोर दिया है कि किसी भी प्रकार की अनहोनी से बचने के लिए महिलाओं के सुरक्षित प्रसव के लिए उन्हें अस्पताल ले जाना चाहिए।भारत के अनेक ग्रामीण इलाकों में आज भी इस बात की हंसी उड़ाई जाती है कि प्रसव के लिए अस्पताल की क्या जरूरत है?जब घर की बुजुर्ग महिलाएं और दाई बखूबी इस कार्य को घर पर ही सम्पन्न करवा रही हैं।ऐसे में वे भूल जाती हैं कि कितने ऐसे नवजात शिशु या माताएं ऐसी स्थिति में दम तोड़ देते हैं।घर पर प्रसव के दौरान अनेक समस्याएं सामने आती हैं जैसे-ज्यादा रक्तस्राव होना,आहार नाल से सम्बन्धित समस्या,बच्चे का पेट में उल्टा हो जाना,माँ और बच्चे को सही साफ-सफाई के अभाव में संक्रमण का खतरा होना आदि।
‘अज्जो’ फिल्म में प्रसव के दौरान जन्म से पहले ही नवजात शिशु के मृत होने की समस्या को बड़ी गम्भीरता से प्रदर्शित किया है।यह फिल्म स्टेज एप पर देखि जा सकती है।फिल्म के निर्माता निर्देशक प्रदीप मोहंती हैं।फिल्म के निर्देशक राम जी बाली,बिटिया अज्जो की भूमिका में प्रदीप्ता मोहंती,मुख्य सहायक निर्देशक अमन कुमार,सहायक निर्देशक पुनीत कौशल हैं।पटकथा,स्क्रीनप्ले,संवाद लेखन राम जी बाली ने किया है।वेशभूषा चीया जोशी, कोरियोग्राफर नम्रता माली,ध्वनिकार मोहित,संगीतकार स्नेहा गुप्ता हैं।इस फिल्म के गाने स्वानंद किरकिरे,अन्तरा मित्रा,महिमा शर्मा,स्रेया गुप्ता की आवाज में हैं।गीत लेखन स्वयं राम जी बाली ने किया है।अज्जो के पिता मोहन की भूमिका में फिल्म के निर्देशक राम जी बाली,दादी का किरदार डॉली अहलूवालियां,अज्जो की माँ लाजवंती का किरदार नीरू डोगरा,पत्रकार का किरदार प्रवीण मोहंती, उपायुक्त की भूमिका में यशपाल शर्मा,डॉ.की भूमिका में आशा शर्मा है।
फिल्म का पहला दृश्य घर पर अज्जो की गर्भवती माँ की प्रसव पीड़ा से संबंधित है मां प्रसव पीड़ा में छटपटाती रहती है।बाहर खड़ी सास पोते के होने की प्रार्थना करती है।बिटिया का जन्म होता है लेकिन नवजात शिशु जन्म से पहले ही दम तोड़ देता है।उसकी एक झलक देखे या दिखाए बिना उसे धरती मां की गोद में सुला दिया जाता है।बेटी अज्जो के बार -बार जिद करने पर भी उसे उसकी छोटी बहन का मुँह नहीं दिखाया जाता है।इस बात से परेशान अज्जो कई बार सरकारी अस्पताल की महिला डॉक्टर से भी मिलकर आती है।माँ के दूसरी बार गर्भवती होने पर वह पूरा प्रयास करती है कि डिलीवरी अस्पताल में हो लेकिन फिर से उसकी एक नहीं सुनी जाती है।फिल्म के अंत में माँ के पेट में बच्चे के उल्टा हो जाने पर अज्जो के प्रयास से डॉटर की टीम द्वारा माँ का सुरक्षित प्रसव कराया जाता है।नवजात बच्ची की जान भी बच जाती है।गाँव के डीसी साहब द्वारा अज्जो को सम्मानित करने के साथ फिल्म समाप्त हो जाती है। है।बाली जी ने महिलाओं से सम्बन्धित उस समस्या को उठाया है जिसके बारे में अभी तक समाज में ज्यादा जागरूकता नहीं फैली है।घर पर जचगी माँ और नवजात शिशु दोनों के लिए घातक होती है।आशा वर्कर इस क्षेत्र में कार्य कर रहे है जिनका सहयोग सभी ग्रामीण परिवारों को करना चाहिए।अस्पताल हर घर तक नहीं पहुंच सकता है लेकिन हर घर द्वारा अस्पताल पहुंचकर माँ और नवजात शिशु के स्वास्थ्य को बनाये रखा जा सकता है। इस फिल्म के सभी दृश्य गाँव में फिल्माए गए हैं।देशकाल-वातावरण का इसमें पूरा ध्यान रखा गया है।हारे पर रखी पतीली,गोबर पाथती दादी,खेत-खलिहानों के बीच से साइकिल पर जाना,उगते सूरज के सामने ट्यूबवेल के पानी में छलांग लगाना,सरकारी अस्पताल का आँगन,सुबह-सवेरे भैंस को नहलाना, गेंहूँ की फसल की कटाई आदि अनेक ऐसे दृश्य हैं जो गाँव की पृष्ठभूमि से दर्शकों का परिचय करवाते हैं।सभी किरदारों की वेशभूषा उनके चरित्र एवं परिवेश के अनुरूप है।पूरी फिल्म में संवादों के माध्यम से राम जी बाली जो सन्देश देना चाहते हैं वह स्पष्ट उजागर हुआ है। किसी भी फिल्म में गीत-संगीत की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।फिल्म पटकथा को और अधिक रोचक और मनोरंजक बनाने के लिए विभिन्न घटनाओं एवं प्रसंगों से सम्बन्धित गीतों की योजना की जाती है।अज्जो अपनी माँ के लिए बेहद फिक्रमंद हैं।वह भले ही उम्र में छोटी है लेकिन वह इस बात को समझती है कि माँ का होना किसी बच्चे के जीवन की सबसे बड़ी जरूरत है।छोटी-सी बच्ची अज्जो अपनी माँ के स्वास्थ्य को लेकर भी चिंतित दिखाई देती है।एक गीत के माध्यम से माँ की महत्ता को भी उजागर किया गया है-
हे माँ री मेरी,तुझ बिन मेरा न कोई ,
जब से जुड़ी मैं सांसों से तेरी,आँख ना तेरी सोई।
‘ए माँ री मेरी’ गीत की धुन बीच-बीच में पार्श्वसंगीत के रूप में दृश्य को और अधिक मार्मिक बना देता है।इस फिल्म का प्रत्येक गीत संदेश से भरा है।गीत लेखन के समय राम जी बाली ने अपनी फिल्म के उद्देश्य के साथ पूरा न्याय किया है।फिल्म के सभी दृश्य बहुत ही सन्वेदनशील,रोचक और जीवंत हैं। फिल्म में पटकथा,पात्रों,घटनाओं,दृश्यों,गीत-संगीत के साथ पूरा न्याय किया गया है।राम जी बाली द्वारा निर्देशित पहली फिल्म काबिले तारीफ़ है।इस फिल्म में बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का सन्देश भी दिया गया है। हैं।राम जी बाली ने बहुत अच्छा संदेश दिया है कि समाज को स्वयं हम सब मिलकर ही बदल सकते हैं और अनेक माताओं एवं नवजात शिशुओं की जिंदगी को बचाकर हम एक स्वस्थ शरीर,स्वस्थ समाज और स्वस्थ हिन्दुस्तान का नव-निर्माण कर सकते हैं।सामाजिक विषयों पर बनी इस तरह की फ़िल्में केवल मनोरंजन नहीं करती हैं बल्कि समाज को जागरूक करके उसमें बदलाव लाती हैं।
हिन्दी विभाग
दौलत राम महाविद्यालय
दिल्ली विश्वविद्यालय